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लक्ष्य : ज़िन्दगी के जंग जीतने की ओर...

ज़िन्दगी के सफर में देखें थे

 जो अपनों के संग मिलकर जो हज़ार सपने,
 कुछ हुए थे पूरे , कुछ है अधूरे 
चलतें चलतें अपनों के साथ 
मेरे ज़िन्दगी में काले बादलों ने यूँ घेर लिया। 
 
जब नमी सी आँखों ने मुझे कहाँ 
सुनों ! एक बात कहनी है तुमसे 
मैंने भी धीरे से कहाँ क्या कहना है कहों
मैं सुन रही हूँ मेरे दिल ने ये बात मानली थी कोई बुरी खबर होगी
तब उसने हौले से मेरे कानों में " तुम्हें कर्करोग है दूसरे चरण में 
मेरी आँखे घड़ी भर नम न हुई बस उसकी आवाज़ मेरे कानों में गूंज रही हो जैसे ,
यकीन मनों लगा की कुछ टूट सा गया हो मेरे अंदर और पैरों तले ज़मीन खिसक गई हो जैसे ,
फिर थोड़े देर मैंने खुद को यूँ थाम लिया जैसे मैंने खुद को खो दिया हो जैसे,
चारों तरफ अँधेरा सा छा गया और थोड़े देर बाद एक रोशनी की किरण मेरे आँखों पर पड़ी सामने मेरी ही परछाई थी केह रही हो मुझसे की मैं तेरा ही तो हिस्सा हूँ डर मत मैं अब भी ज़िंदा हूँ ,
तू उठ क्या सोचकर तुने मुझे छोड़ने का निर्णय लिया 
मैं उसके बातों में यूँ आ गई की ज़िन्दगी को पाने की चाहत में मैंने खुद को भूला दिया अब ज़िद बस इतनी थी कुछ भी हो , चाहे कितना भी दर्द क्यों न हो मेरे आगे सब फ़ीके है
मैंने खुद को इतना ज़िद्दि बनाया दिल भी मेरे आगे हार ही गया 
एक नई रोशनी की चमक में जब मैं खुद को हार रही थी मेरे अपनों ने साथ देकर मुझे दोबारा ज़िंदा कर दिया 
आखिर मैंने उस दानव रूपी कर्क रोग को देखते ही देखते हरा दिया
जीत की ख़ुशी क्या होती है यकीन मनों इससे बेहतर ज़िन्दगी क्या होती है कभी समझ नहीं आया 
जीतने का जज़्बा अब इतना बड़ा है की अब कोई आसानी से डरा न सके और मेरे मुकाम को छूने की ज़िद ने मुझे  क्या से क्या बना दिया 
" इरादे हो मजबूत तो जीत पक्की है " ।।


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